ब्यूरो डेस्क। ऋतु परिवर्तन को इंगित करने वाली और स्वास्थ्य समृद्धि की प्रतीक शरद पूर्णिमा इसबार 13 अक्टूबर को मनाया जायेगा। शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और देखती हैं कौन जाग रहा है, इसीलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इसे अश्विनी मास की पूर्णिमा भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन श्री कृष्ण ने महारास रचाया था। यह भी माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है इसलिए लोग शरद पूर्णिमा की रात को अपनी छतों पर खीर बनाकर रखते हैं तथा दूसरे दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
शरद पूर्णिमा को श्रीकृष्ण के रासलीला से भी जोड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात ही श्रीकृष्ण ने गोपियों संग रासलीला रचाई थी। इसी वजह से वृंदावन में आज भी शरद पूर्णिमा पर विशेष आयोजन किए जाते हैं। इसे रासलीला की रात भी कहा जाता है। एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस रात महालक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा होता है, लक्ष्मी उसके घर निवास करती हैं। इस कारण शरद पूर्णिमा की रात जागरण का विशेष महत्व है।लोग रातभर जाग पूजा-पाठ करते हैं और घर के बाहर लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीपक जलाते हैं।
