रिपोर्ट- अभिषेक
वाराणसी। धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी अपनी परपंराओं के लिए देश से लेकर विदेश तक में प्रचलिच है। काशी में रंगभरी एकादशी का एक अलग महत्व है। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के उपरांत रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना लेने जाते हैं। इसी दिन माता पार्वती शिव जी के साथ काशी आती है। उनके आगमन पर रंग, गुलाला उड़ाया जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी ने बताया कि यह परंपरा 356 वर्ष से निरंतर निभाई जा रही है। इस बार रंगभरी एकादशी का पर्व पांच मार्च को मनाया जाएगा। इस रस्म के पहले लोका चारों का श्री गणेश दो मार्च को टेढ़ी नीम स्थित नवीन मंहत के आवास पर होगा।
बता दें कि काशी में होली की शुरूआत भी रंगभरी एकादशी से होती है और बुढ़वा मंगल तक खेली जाती है। साथ ही मणिकर्णिका घाट पर साधुओं के द्वारा भस्म की भी होली खेली जाती है। जलती चिताओं के राख से भस्म की होली खेली जाती है।
