वाराणसी। विभिन्न संस्कृतियों का संगम कहे जाने वाले बनारस में कोई भी पर्व, मेला या त्यौहार हो, लोग उसे पूरे उत्साह से मनाते हैं। ऐसा ही एक मेला है सोरहिया मेला। 6 सितम्बर शुक्रवार को शुरू हुए 15 दिवसीय सोरहिया मेले को लेकर महालक्ष्मी के दरबार में भक्तों की अंबार लगने लगी है।
भाद्र के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि के दिन से महिलाएं मां लक्ष्मी का दर्शन करती हैं और आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन अपने संकल्प के अनुसार व्रत रखकर समापन करती है। इसी दिन जिउतिया मेला भी पड़ता है। सोरहिया मेले के कारण महालक्ष्मी मंदिर में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतार दिखाई पड़ने लगी।
इस अवसर पर महालक्ष्मी मंदिर की भव्य सजावट की जाती है। महिलाएं मां लक्ष्मी के दर्शन कर और 16 गांठ वाले धागे को चढ़ा कर व्रत का संकल्प लेती हैं। सोरहिया मेले के शुरूआत के साथ ही लक्सा स्थित महालक्ष्मी मंदिर में सजावट के साथ ही मां की अलौकिक झांकी की सुंदरता सजावट में चार चांद लगा देती है।
इस अलौकिक दृश्य का एक बार दर्शन करते ही मानों भक्तों के दु:ख खत्म हो जाते हो। ब्रह्म मुहूर्त में ही महालक्ष्मी को पंचामृत स्नान कराया जाता है और इसके बाद मां की आरती करने के बाद गर्भगृह को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है। इस बार सोरहिया मेले को लेकर खास बात यह है कि मेले का अभिप्राय ही 16 दिन होता है लेकिन तिथियों की हानि के चलते इस बार मेला 15 दिन का ही होगा।
धर्म नगरी काशी में इस मेले का अपना अलग ही एक महत्व है और सभी दिन मां के दर्शन करने भक्त मंदिर में पहुंचते हैं। इसके बाद महिलाओं को बचे दिन में पूजा करने का संकल्प लेना होता है। संकल्प के बाद महिलाएं डलिया में सजे हुए माता के मुखौटे को लेकर अपने घर जाती है और शास्त्रों के अनुसार बचे हुए दिनों तक मां के मुखौटे की पूजा कर सिद्धी प्राप्त करती हैं और जिउतिया के व्रत के समापन के साथ इस मेले का भी समापन हो जाता है।
