वाराणसी। रामनगर किले में स्थित दक्षिण मुखी काले हनुमान मंदिर का कपाट शनिवार को आम लोगों के लिए खोला गया। प्रतिवर्ष रामलीला के आखिरी दिन ही आम लोगों के लिए इस मंदिर का कपाट खोला जाता है, जिससे भक्त अपने भगवान के दर्शन कर सकें।
क्या है इतिहास
दक्षिण मुखी काले हनुमान मंदिर के स्थापना के पीछे एक कहानी है, जो शायद बहुत सारे लोगों के जानकारी में नहीं है। दरअसल हनुमानजी की ऐसी प्रतिमा अपने तरह की पुरे विश्व में एक अकेली और अनूठी प्रतिमा है। वर्षों पहले रामनगर के राजा को स्वप्न आया कि किले के पीछे की ओर एक वानर रूपी हनुमानजी की प्रतिमा है,जिसकी स्थापना वहीं करा दी जाए। अगली सुबह जब राजा ने वहां खुदाई कराया तो किले के पीछे गंगा किनारे यह प्रतिमा मिली और राजा के आदेश पर उसकी स्थापना वहीं करा दी गई। काले पत्थर की यह प्रतिमा हनुमान के प्रतिरूप माने जाने वाले वानर की अवस्था में स्थापित है और दक्षिणमुखी है। किसी भी तरफ से इसे देखने पर आपको लगेगा मानो यह आपके ही ओर देख रही है। इस वानर रूपी काले हनुमानजी की प्रतिमा की ख़ास बात यह भी है कि इस प्रतिमा पर मानव शरीर पर पाये जाने वाले बाल(रोये) की तरह रोये भी हैं।
आज ही के दिन खुलता है कपाट
रामनगर किले के दक्षिणी ओर स्थापित यह मंदिर वर्ष के 364 दिन आम लोगों के लिए बंद रहता है और रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के राजगद्दी पर होने वाली “भोर की आरती” वाले दिन आमजनों के लिए कुछ ही घंटों के लिए खुलता है,जिसके कारण यहां भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है।
क्या कहते हैं संत
दक्षिण मुखी काले हनुमान मंदिर में दर्शन पूजन करने पहुंचे सर्वेशदास जी महराज बताते हैं कि यहां बाल स्वरूप में हनुमान जी हैं,जो काले हनुमान जी के नाम से जाने जाते हैं। कलयुग में भकतों का उद्धार करने के लिए भगवान इस रूप में भी भक्तों के बीच हैं। इनका आज ही के दिन दर्शन किया जाता है और इनके दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
क्या कहते हैं श्रद्धालु
काले हनुमानजी के दर्शन के लिए आए भक्तों की अगर मानें तो इनके दर्शन मात्र से ही सब समस्याओं से निदान मिल जाता है। श्रद्धालु पप्पू यादव बताते हैं कि वह 12 वर्षों से बाबा के दर्शन करने हर वर्ष यहां आते हैं और उनके पूर्वज भी यहां दर्शन के लिए आते रहे हैं। पूरे वर्ष भक्तों को आज के दिन का इंतजार रहता है।
