वाराणसी। या हुसैन, या हुसैन, या अली के नारे से आज पूरा शहर गूंज उठा है। शोहदा-ए-कर्बला की याद में शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में ताजिया रखा गया। वहीं उलमा ने कर्बला की जंग पर रोशनी डाली है तो शोअरा-ए-कराम ने खेराजे अकीदत पेश की।
मोहर्रम को इमाम हुसैन के गम में मनाया जाता है। इमाम हुसैन को अल्लाह का दूत कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब हुसैन छोटे थे तो उनकी मां इस दुनिया से रुखसत हो गई थी। हुसैन को कर्बला में खंजर से गला काटकर हत्या की गई थी, जिनके गम में मोहर्रम मनाया जाता है।
मोहर्रम बकरीद के बाद मनाया जाता है। जो बकरीद से ठीक एक महीने बाद आता है। मोहर्रम कर्बला के जंग का प्रतिक है। कर्बवा इराक में मौजूद है। कर्बला मक्का-मदीना के बाद दूसरी सबसे पवित्र जगह है। कर्बला के ही जंग में हुसैन की खंजर से गला काटकर हत्या कर दी गई थी।
मोहर्रम में शिया मुस्लिम खुद को जख्मी कर लेते हैं और पूरे दो महीने शोक मनाते हैं। मोहर्रम के दिन तलवार, चाकू धार-धार हथियार से प्रदर्शन करते हैं। इसमें औरतें बूढ़े, बच्चे भी शामिल रहते हैं। हुसैन के साथ उनके रिश्तेदार भी कर्बला के जंग में शहीद हो गए थे जिसके गम में मोहर्रम मनाया जाता है।
