रिपोर्ट-सौम्या
वाराणसी। काशी की नगरी मोक्ष की नगरी के नाम से जानी जाती है। अपने अल्हड़ अंदाज से काशी की एक अलग ही पहचान है। जहां एक तरफ चिता जल रही तो वहीं दूसरी तरफ चिता की राख से मसाने में होली खेली जा रही। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर कोई बाबा के इस मसाने में भस्म की होली में खुद को सराबोर कर पूरा शिवमय हो जाता है।
जीव, जीवन और मोक्ष को दर्शाती है ये मसाने की होली। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को काशीवासी निभाते चले आ रहे हैं। मसाने की होली अपने आप में इतनी अद्भुत है जिसको हम सब शब्दों में नहीं पिरो सकते, बल्कि इसे वहां जाकर महसूस कर सकते हैं। एक तरफ चिता जल रही है तो दूसरी तरफ चिता के ही भस्म से लोग मद मस्त होकर होली खेलते हैं।
मान्यता है जब शिव रंगभरी एकादशी के दिन माता गौरी का गौना करा कर ले जाते हैं तो उसके दूसरे दिन अपने भक्तों को होली खेलने की अनुमति देते हैं और इसी दिन मसाने की होली को लोग शिव में लीन होकर खेलते हैं।
